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वैचारिकी

मेरे सपनों का भारत

मोहनदास करमचंद गांधी

अनुक्रम 2 स्वराज्य का अर्थ पीछे     आगे

स्वराज्य एक पवित्र शब्द है; वह एक वैदिक शब्द है, जिसका अर्थ आत्मा-शासन और आत्म-संयम है। अँग्रेजी शब्द 'इंडिपेंडेंस' अक्सर सब प्रकार की मर्यादाओं से मुक्त निरंकुश आजादी का या स्वच्छंदता का अर्थ देता है; वह अर्थ स्वराज्य शब्द में नहीं।

स्वराज्य से मेरा अभिप्राय है लोक-सम्मति के अनुसार होने वाला भारतवर्ष का शासन। लोक-सम्म‍ति का निश्चय देश के बालिग लोगों की बड़ी-से-बड़ी तादाद के मत के जरिए हो, फिर वे चाहे स्त्रियाँ हों या पुरुष, इसी देश के हों या इस देश में आकर बस गए हों। वे लोग ऐसे हों जिन्होंने अपने शारीरिक श्रम के द्वारा राज्य की कुछ सेवा की हो और जिन्होंने मतदाताओं की सूची में अपना नाम लिखवा लिया हो। ...सच्चा स्वराज्य थोड़े लोगों के द्वारा सत्ता प्राप्त कर लेने से नहीं, बल्कि जब सत्ता का दुरुपयोग होता हो तब सब लोगों के द्वारा उसका प्रतिकार करने की क्षमता प्राप्त करके हासिल किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, स्वराज्य जनता में इस बात का ज्ञान पैदा करके प्राप्त किया जा सकता है कि सत्ता पर कब्जा करने और उसका नियमन करने की क्षमता उसमें है।

आखिर स्वराज्य निर्भर करता है हमारी आंतरिक शक्ति पर, बड़ी-से-बड़ी कठिनाइयों से जूझने की हमारी ताकत पर। सच पूछो तो वह स्वराज्य, जिसे पाने के लिए अनवरत प्रयत्न और बचाए रखने के लिए सतत् जागृति नहीं चाहिए, स्वराज्य कहलाने के लायक ही नहीं है। जैसा कि आपको मालूम है, मैंने वचन और कार्य से यह दिखलाने की कोशिश की है कि स्त्री-पुरुषों के विशाल समूह का राजनीतिक स्वराज्य एक-एक शख्स के अलग-अलग स्वराज्य से कोई ज्यादा अच्छी चीज नहीं है, और इसलिए उसे पाने का तरीका वही है जो एक-एक आदमी के आत्मा-स्वराज्य या आत्म-संयम का है।

स्वराज्य का अर्थ है सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने के लिए लगातार प्रयत्न करना, फिर वह नियंत्रण विदेशी सरकार का हो या स्वदेशी सरकार का। यदि स्वराज्य हो जाने पर लोग अपने जीवन की हर छोटी बात के लिए मन के लिए सरकार का मुँह ताकना शुरू कर दें, तो वह स्वराज्य-सरकार किसी काम की नहीं होगी।

मेरा स्वराज्य तो हमारी सभ्यता की आत्मा को अक्षुण्ण रखना है। मैं बहुत सी नई चीजें लिखना चाहता हूँ, परंतु वे तमाम हिंदुस्तान की स्लेट पर लिखी जानी चाहिए। हाँ, मैं पश्चिम से भी खुशी से उधार लूँगा, पर तभी जब कि मैं उसे अच्छे सूद के साथ वापस कर सकूँ।

स्वराज्य की रक्षा केवल वहीं हो सकती हैं, जहाँ देशवासियों की ज्यादा बड़ी संख्या। ऐसे देशभक्तों की हो, जिनके लिए दूसरी सब चीजों से-अपने निजी लाभ से भी-देश की भलाई का ज्यादा महत्व हो। स्वराज्य का अर्थ है देश की बहुसंख्य जनता का शासन। जाहिर है कि जहाँ बहुसंख्या जनता नीति-भ्रष्ट हो या स्वार्थी हो, वहाँ उसकी सरकार अराजकता की ही स्थिति पैदा कर सकती है, दूसरा कुछ नहीं।

मेरे... हमारे... सपनों के स्वराज्य में जाति (रेस) या धर्म के भेदों का कोई स्थान नहीं हो सकता। उस पर शिक्षितों या धनवानों का एकाधिपत्य नहीं होगा। वह स्वराज्य सबके लिए-सबके कल्याण के लिए होगा। सबकी गिनती में किसान तो आते ही हैं, किंतु लूले, लंगड़े, अंधे और भूख से मरने वाले लाखों-करोंड़ों मेहनतकश मजदूर भी अवश्य आते हैं।

कुछ लोग ऐसा कहते हें कि भारतीय स्वराज्य तो ज्यादा संख्या वाले समाज का यानी हिंदुओं का ही राज्य होगा। इस मान्यता से ज्यादा बड़ी कोई दूसरी गलती नहीं हो सकती। अगर यह सही सिद्ध हो तो अपने लिए मैं ऐसा कह सकता हूँ कि मैं उसे स्वराज्य मानने से इनकार कर दूँगा और अपनी सारी शक्ति लगाकर उसका विरोध करूँगा। मेरे लिए हिंद स्वराज्य का अर्थ सब लोगों का राज्य, न्याय का राज्य है।

अगर स्वराज्य का अर्थ हमें सभ्य बनाना और हमारी सभ्यता को अधिक शुद्ध तथा मजबूत बनाना न हो, तो वह किसी कीमत का नहीं होगा। हमारी सभ्यता का मूल तत्व ही यह है कि हम अपने कामों में फिर, वे निजी हो या सार्वजानिक, नीति के पालन को सर्वोच्च स्थान देते हैं।

पूर्ण स्‍वराज्‍य… कहने में आशय यह है कि वह जितना किसी राजा के लिए होगा उतना ही किसान के लिए, जितना किसी धनवान जमींदार के लिए होगा उतना ही भूमिहीन खेतिहर के लिए, जितना हिंदुओं के लिए होगा उतना ही मुसलमानों के लिए, जितना जैन, यहूदी और सिक्‍ख लोगों के लिए होगा उतना ही पारसियों और ईसाइयों के लिए। उसमें जाति-पांति, धर्म अथवा दरजे के भेदभाव के लिए कोई स्‍थान नहीं होगा।

स्‍वराज्‍य शब्‍द का अर्थ स्‍वयं और उसकी प्राप्ति के साधन यानी सत्‍य और अहिंसा-जिनका पालन करने के लिए हम प्रतिज्ञाबद्ध हैं-ऐसी किसी संभावना को असंभव सिद्ध करते हैं कि हमारा स्‍वराज्‍य किसी के लिए तो अधिक होगा और किसी के लिए कम, किसी के लिए लाभकारी होगा और किसी के लिए हानिकारी या कम लाभकारी।

मेरे सपने का स्‍वराज्‍य तो गरीबों का स्‍वराज्‍य होगा। जीवन की जिन आवश्‍यकताओं का उपभोग राजा और अमीर लोगो करते हैं, वहीं तुम्‍हें भी सुलभ होना चाहिए; इसमें फर्क के लिए स्‍थान नहीं हो सकता। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं हमारे पास उनके जैसे महल होने चाहिए। सुखी जीवन के लिए महलों की कोई आवश्‍यकता नहीं। हमें महलों में रख दिया जाए तो हम घबरा जाएँ। लेकिन तुम्‍हें जीवन की वे सामान्‍य सुविधाएँ अवश्‍य मिलनी चाहिए, जिनका उपभोग अमीर आदमी करता है। मुझे इस बात में बिल्‍कुल भी संदेश नहीं है कि हमारे स्‍वराज्‍य तब तक पूर्ण स्‍वराज्‍य नहीं होगा, जब तक वह तुम्‍हें ये सारी सुविधाएँ देने की पूरी व्‍यवस्‍था नहीं कर देता।

पूर्ण स्‍वराज्‍य की मेरी कल्‍पना दूसरे देशों से कोई नाता न रखने वाली स्‍वतंत्रता की नहीं, बल्कि स्‍वस्‍थ और गंभीर किस्‍म की स्‍वतंत्रता की है। मेरा राष्‍ट्रप्रेम उग्र तो है, पर वह वर्जनशील नहीं है; उसमें किसी दूसरे राष्‍ट्र या व्‍यक्ति को नुकसान पहुँचाने की भावना नहीं है। कानूनी सिद्धांत असल में नैतिक सिद्धांत ही हैं। 'अपनी संपत्ति का उपयोग इस तरह करो कि पड़ोसी की संपत्ति को कोई हानि न पहुँचे।' - यह कानूनी सिद्धांत एक सनातन सत्‍य को प्रकट करता है और उसमें मेरा पूरा विश्‍वास है।

यह सब इस बात पर निर्भर है कि पूर्ण स्‍वराज्‍य से हमारा आशय क्‍या है और उसके द्वारा हम पाना क्‍या चाहते हैं। अगर हमारा आशय यह है कि जनता में जागृति होनी चाहिए, उसे अपने सच्‍चे हित का ज्ञान होना चाहिए और सारी दुनिया के विरोध का सामना करके भी उस हित की सिद्धि के लिए कोशिश करने की योग्‍यता होनी चाहिए; और यदि पूर्ण स्‍वराज्‍य के द्वारा हम सुमेल, भीतरी या बाहरी आक्रमण से रक्षा और जनता की आर्थिक स्थिति में उत्‍तरोत्‍तर सुधार चाहते हो, तो हम अपना सीधा प्रभाव डालकर, सिद्ध कर सकते हैं।

स्‍वराज्‍य की मेरी कल्‍पना के विषय में किसी को कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। उसका अर्थ विदेशी नियंत्रण से पूरी मुक्ति और पूर्ण आर्थिक स्‍वतंत्रता है। उसके दो दूसरे उद्देश्‍य भी हैं। धर्म एक छोर पर है नैतिक और सामाजिक उद्देश्‍य और दूसरे छोर पर इसी कक्षा का दूसरा उद्देश्‍य है धर्म। यहाँ धर्म शब्‍द का सर्वोच्‍च अर्थ अभीष्‍ट है। उसमें हिंदू धर्म, इस्‍लाम, ईसाई धर्म आदि सबका समावेश होता है, लेकिन वह इन सबसे ऊँचा है। ...इसे हम स्‍वराज्‍य का सम-चतुर्भुज कह सकते हैं; यदि उसका एक भी कोण विषम हुआ तो उसका रूप विकृत हो जाएगा।

मेरी कल्‍पना का स्‍वराज्‍य तभी आएगा जब हमारे मन में यह बात अच्‍छी तरह जम जाए कि हमें अपना स्‍वराज्‍य सत्‍य और अहिंसा के शुद्ध साधनों द्वारा ही हासिल करना हैं, उन्‍हीं के द्वारा हमें उसका संचालन करना है और उन्‍हीं के द्वारा हमें उसे कायम रखना है। सच्‍ची लोकसत्‍ता या जनता का स्‍वराज्‍य कभी भी असत्‍यमय और हिंसक साधनों से नहीं आ सकता। कारण स्‍पष्‍ट और सीधा है : यदि असत्‍यमय और हिंसक उपायों का प्रयोग किया गया, तो उसका स्‍वाभाविक परिणाम यह होगा कि सारे विरोधियों को दबाकर या उनका नाश करके खतम कर दिया जाएगा। ऐसी स्थिति में वैयक्ति स्‍वतंत्रता की रक्षा नहीं हो सकती। वैयक्तिक स्‍वतंत्रता को प्रकट होने का पूरा अवकाश केवल विशुद्ध अहिंसा पर आधारित शासन में ही मिल सकता है।

अहिंसा पर आधारित स्‍वराज्‍य में लोगों को अपने अधिकारों का ज्ञान न हो तो कोई बात नहीं, लेकिन उन्‍हें अपने कर्त्‍तव्‍यों का ज्ञान अवश्‍य होना चाहिए। हर एक कर्त्‍तव्‍य के साथ उसकी तौल का अधिकार जुड़ा हुआ होता ही है, और सच्‍चे अधिकार तो वे ही हैं जो अपने कर्त्‍तव्‍यों का योग्‍य पालन करके प्राप्‍त किए गए हों। इसलिए नागरिकता के अधिकार सिर्फ उन्‍हीं को मिल सकते हैं, जो जिस राज्‍य में वे रहते हों उसकी सेवा करते हों। और सिर्फ वे ही इन अधिकारों के साथ पूरा न्‍याय कर सकते हैं। हर एक आदमी को झूठ बोलने और गुंडागिरी करने का अधिकार हैं, किंतु इस अधिकार का प्रयोग उस आदमी और समाज, दोनों के लिए हानिकारक है। लेकिन जो व्‍यक्ति सत्‍य और अहिंसा का पालन करता है, उसे प्रतिष्‍ठा मिलती है और इस प्रतिष्‍ठा के फलस्‍वरूप उसे अधिकार मिल जाते हैं। और जिन लोगों को अधिकार अपने कर्त्‍तव्‍यों के पालन के फलस्‍वरूप मिलते हैं, वे उनका उपयोग समाज की सेवा के लिए ही करते हैं, अपने लिए कभी नहीं। किसी राष्‍ट्रीय समाज के स्‍वराज्‍य का अर्थ उस समाज के विभिन्‍न व्‍यक्तियों के द्वारा (अर्थात आत्‍म-शासन) का योग ही है। और ऐसा स्‍वराज्‍य व्‍यक्तियों के द्वारा नागरिकों के रूप में अपने कर्त्‍तव्‍य के पालन से ही आता है। उसमें कोई अपने अधिकारों की बात नहीं सोचता। जब उनकी आवश्‍यकता होती है तब वे उन्‍हें अपने-आप मिल जाते है और इसलिए मिलते हैं कि वे अपने कर्त्‍तव्‍य का संपादन ज्‍यादा अच्‍छी तरह कर सकें।

अहिंसा पर आधारित स्‍वराज्य में कोई किसी का शत्रु नहीं होता, सारी जनता की भलाई का सामान्‍य उद्देश्‍य सिद्ध करने में हर एक अपना अभीष्‍ट योग देता है सब लिख-पढ़ सकते हैं और उनका ज्ञान दिन-दिन बढ़ता रहता है। बीमारी और रोग कम-से-कम हो जाएँ, ऐसी व्‍यवस्‍था की जाती है। कोई कंगाल नहीं होता और मजदूरी करना चाहने वाले को काम अवश्‍य मिल जाता है। ऐसी शासन-व्‍यवस्था में जुआ, शराबखोरी और दुराचार का या वर्ग-विद्वेष का कोई स्‍थान नहीं होता। अमीर लोग अपने धन का उपयोग बुद्धिपूर्वक उपयोग कार्यों में करेंगे; अपनी शान-शौकत बढ़ाने में या शारीरिक सुखों की वृद्धि में उसका अपयव्‍य नहीं करेंगे। उसमें ऐसा नहीं हो सकता, होना नहीं चाहिए, कि चंद अमीर तो रत्‍न-जटित महलों में रहे और लाखों-करोड़ों ऐसा मनहूस झोपड़ियों में, जिनमें हवा ओर प्रकाश का प्रवेश न हों। अहिंसक स्‍वराज्‍य में न्‍यायपूर्ण अधिकारों का किसी के भी द्वारा कोई अतिक्रमण नहीं हो सकता और इसी तरह किसी को कोई अन्‍यायपूर्ण अधिकार नहीं हो स‍कते। सुसंघटित राज्‍य में किसी न्‍याय अधिकार का किसी दूसरे के द्वारा अन्‍यायपूर्वक छीन जाना असंभव होना चाहिए और कभी ऐसा हो जाए तो अपहर्ता को अपदस्‍थ करने के लिए हिंसा का आश्रय लेने की जरूरत नहीं होनीं चाहिए।


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